भुभु जोत धौलाधार पर्वत श्रृंखला से निकले द्वितयक अक्ष में पाया जाता है। यह द्वितयक अक्ष, मुख्य अक्ष से छोटा भंगाल के लोहार्डी क्षेत्र के आस-पास से अलग होता है। मैं वर्तमान में इसी अक्ष के साथ लगते क्षेत्र में वन रक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा हूँ। दिसम्बर 2016 में मैं वन विभाग हिमाचल प्रदेश में भर्ती हुआ था। भर्ती होने तक मुझे विभाग के बारे ज्यादा जानकारी नहीं थी। मुझे यह भी ज्ञात नहीं था कि जिस क्षेत्र को वन रक्षक को सम्भालना होता है वह बीट कहलाती है। और ऐसी कौन-2 सी बीटें मेरे क्षेत्र में हैं। जब पोस्टिंग लेटर हाथ लगा तो पता चला कि किसी हुरंग नामक बीट में जाना है। इस बारे अधिक छानबीन की गयी तो यह जानकारी मिली कि यह वही क्षेत्र है जहाँ देवता हुरंग नारायण का मन्दिर है और यहीं से भूभू जोत जाया जाता है। शायद मुझपर देवता की अपार कृपा थी जो देवता ने मुझे अपनी शरण में जगह दी।
चुहार घाटी कुल 4 इलाकों में बंटा है जिनके नाम कुट्गढ़, देवगढ़, हस्तपुर और अमरगढ़ है। मार्च 2016 को मैंने पहली बार घाटी के इलाका हस्तपुर में कदम रखा। बाकी इलाकों में मैं पहले भी जा चुका था। यहाँ मुझे तीन चीज़ों ने बहुत आकर्षित किया वह थे यहाँ का वन विश्राम गृह सिल्हबुधानी, देवता हुरंग नारयण मन्दिर और भुभु जोत। शुरू के २ मुख्य आकर्षण के बारे में मैं आपको जरुर बताना चाहूँगा तीसरे के बारे में आप इस पूरी यात्रा के दौरान जान ही लेंगे।
वन विश्राम गृह सिल्हबुधानी घटासनी से लगभग 25 KM की दूरी पर स्थित है। इसका इतिहास बहुत रोचक रहा है। इसे अंग्रेजों के समय डाक बंगलो कहा जाता था। अंग्रेजों के शासन के दौरान उन्नीसवीं सदी में जगह-2 ऐसे ही डाक बंगलो का निर्माण किया गया था। उस दौरान क्योंकि सड़क नहीं हुआ करती थी तो लम्बे सफर में आते जाते हुए इन्ही में विश्राम किया जाता था। आज भी कई स्थानीय बुजुर्ग इसे बंगलो के नाम से ही जानते हैं। इसकी पुरानी जगह कुंगडी नामक गाँव से कुछ ही दूरी पर थी। वर्ष 1905 के काँगड़ा भूकंप में यह डाक बंगलो पूरी तरह टूट गया। इसके पुनः निर्माण के लिए ग्रामण नामक गाँव से कुछ ही उपर एक नई जगह (वर्तमान जगह) चुनी गयी। और इस तरह लगभग वर्ष 1913 में यह नया डाक बंगलो बनकर तैयार हुआ। बंगलो के पुराने विजिटर रजिस्टर में आज भी वर्ष 1942 से आगे की एंट्री पढ़ी जा सकती है।
देवता हुरंग नारयण को चुहार घाटी का राजा कहा जाता है। इनका मुख्य मन्दिर हुरंग नामक गाँव पर स्थित है। यह वन विश्राम गृह सिल्हबुधानी से लगभग 10 KM की दुरी (वाया रोड) और घटासनी से 35 KM की दुरी पर स्थित है। आहलंग गाँव तक सड़क काफी अच्छी स्थिति में है। लेकिन आगे के 4 KM के सफर में ड्राईवर एक अलग ही स्तर का एडवेंचर अनुभव करता है। गाड़ी, गाड़ी न रहकर PK फिल्म की डांसिंग गाड़ी बन जाती है। हुरंग नारयण को पर्यावरण प्रेमी देऊ भी कहा जाता है। मन्दिर के आस पास का कुल 17-18 hactare का देवदार और बान का जंगल देवता ही नियंत्रित करते हैं। इसमें लगभग 7,8 hactare के बान के जंगल को देऊ बणी (देवता का निजी वन) के नाम से जाना जाता है। इसमें आना जाना और किसी भी तरह के लोहे के हथियार ले जाना वर्जित है। स्थानीय हुरंग निवासी भी इस जंगल में कभी-२ देवता के काम के लिए ही जाते हैं। मन्दिर परिवेश में सिवाय मदिरा के चमडा बीडी,सिगरेट और खेनी जैसा किसी भी तरह का नशीला पदार्थ ले जाना वर्जित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि हिमालय की बहुत सी जड़ी बूटियों से बनी एक खास तरह की मदिरा जिसे स्थानीय भाषा में ध्रुब्ली और सूर कहते हैं, देवता को भी चढाई जाती है।
कैसे यहाँ आकर जंगल की भागदौड़ में दो-ढाई महीने बीत गये कुछ पता न चला। शाम को सूर्यास्त के समय का भुभु का वो सुनहरा रूप मुझे हर दिन अपनी ओर आकर्षित करता था। मन यहीं शांत न होकर काल्पनिक दुनिया में उड़ने लगता था। दिन यूँ ही निकलते गये, पर काम के चलते हमारा कभी भी भुभु जोत जाने का इरादा सफल नहीं हो पाया।
इसी बीच 17 जून की शाम को वन विश्राम गृह सिल्ह्बुधानी में कुछ घुमक्कड़ों का आना हुआ। जिन्हें अगले दिन सुबह भुभु जोत होकर कुल्लू जाना था। हमारे तत्कालीन चौकीदार "रूपलाल" से उनकी कुछ बात हुयी परन्तु जनाब कुछ कारणों से उन्हें टेंट स्थापित करने की जगह देने से मुकर गये। मामला किसी तरह हम तक पहुंचा तो हमने पूरी बात सुनने के बाद उन्हें वहां टेंट स्थापित करने की इजाजत दे दी। वे कुल 5 लोगों का समूह थे। जिसमे 2 विदेशी (1 पुरुष,1 स्त्री) और 3 स्वदेशी थे। इन 3 स्वदेशियों में 2 पोर्टर-कम-गाइड-कम-कुक थे और एक उन्हीं 2 विदेशियों की तरह घुमक्कड़, जिनका नाम वरुणवीर पुंज था। यहाँ सेफ कैंपस में रहने की सेटिंग करवाने से वे सब बहुत खुश थे। इस बात को वरुणवीर भाई ने अंग्रेजी में विदेशियों को समझाया तो उन में से फीमेल घुमक्कड़ ने मुझे सबसे पहले गले लगाकर धन्यवाद दिया।
थैंक यू, यू हेल्प अस,
दे (वरुण एंड पोर्टर) टोल्ड मी.
एक हंसी के साथ मैं कुछ कह नहीं पाया।
मुझे उम्मीद नहीं थी कि जिस तरह की सख्ती उनके साथ चौकीदार ने की थी उसके बाद
भी वे हमारा इतना अहसान रखेंगे।
जान पहचान में पता चला कि हमारे दोनों विदेशी मेहमानों का नाम Mate और Menina flor है। लम्बी चौड़ी कद काठी के वरुण भाई से शाम को काफी लम्बी
चर्चा हुयी। जिनमें उनका अब तक का सफर और वन एवं पर्यावरण मुख्य विषय रहे। चर्चा के
बीच उन्होंने मुझे एक रोचक बात बताई
“यू नो, यह सभी पेड़ पौधे हमारे समाज की तरह है जो एक दुसरे से अपनी रूट सिस्टम
से बंधे हैं और जब हम किसी एक को भी नुक्सान पहुंचाते हैं तो ये जड़ों के जरिये एक
दुसरे को संदेश पहुंचाते हैं”
यह बात सुनकर मुझे वरुण भाई कुछ ज्यादा ही काल्पनिक दुनिया के व्यक्ति लग रहे
थे। मैं कम ज्ञान का मारा, विश्वास नहीं कर पा रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। लेकिन
यह बात कहीं न कहीं मेरे दिमाग में घर कर गयी थी। और तब तक इसने मुझे तंग करना
नहीं छोड़ा जब तक मैं The Hidden life
of trees by Peter Wohleben पुस्तक तक न पहुंच गया। इस पुस्तक को पढने के बाद मेरा पेड़
पौधों को देखने का नजरिया ही बदल गया। मेरा और विशाल (साथी वन रक्षक) का भूभू जाने
का प्लान कबसे सफल नहीं हो पर रहा था। ऐसे में मेहमानों का साथ पाकर दोनों का भूभू जोत जाने का प्लान रातों रात बन गया।
18 जून 2017: सुबह जल्दी उठकर हमने अपने लिए परांठे पैक कर लिए और सफर के लिए जरूरी सामान बांधकर लगभग 9 बजे सफर की शुरुआत की। हमारा सिल्ह्बुधानी गाँव तक का 4 KM का सफर कच्चे रोड से ही गुजरा। सिल्हबुधानी नाम दो गांवों को मिलकर बना है, जिसमें सिल्ह और बुधान दोनों अलग-2 गाँव हैं। जो भूभू जोत के बिलकुल चरणों में बसे हैं। रियासत काल से ही इस गाँव का उलेख इतिहास की पुरानी किताबों में बहुत मिलता है।
इस गाँव से आगे का सफर एक चौड़े सर्पीले रास्ते से गुजरता हुआ दोप्ती नामक
स्थान पर पहुंचा। सफर के दौरान भुभु नाले के दाईं ओर वांगन और भुभु नाल DPF (डीमार्केटेड प्रोटेक्टेड फारेस्ट) के चौड़ी पत्तियों और रई
तोस के घने जंगल मन को रोमांच से भर देते हैं। घने होने के साथ-2 यहाँ पानी की मौजूदगी
के कारण यह जंगल बहुत से जंगली जीव जन्तुओं के लिए अच्छा घर भी है। इन जंगलों में
हिमालयन मोनाल, कोक्लास फिजेंट, बार्किंग डिअर, हिमालयन गोरल, काला भालू, तेंदुआ,
येलो थ्रोटेड मार्टिन, सिवेट कैट और लेपर्ड कैट आदि जंगली जीव जन्तु पाए जाते हैं।
इन्ही जंगलों के बीच एक कठोर पथरीली चोटी दिखाई पडती है। जिसे महाजन टिब्बा कहा
जाता है। किसी भी एडवेंचर प्रेमी के मन में इसे एक बार चढ़कर फतेह करने का मन जरुर
करता है। दोप्ती तक रास्ता सीधा-२ ही जाता है। जिसके बाद इसमें धीरे-२ चढाई आने
लगती है। और एक पड़ाव ऐसा आता है जब बिलकुल खड़ी चढाई का सामना करना पड़ता है।
दोप्ती वह जगह है जहाँ प्रस्तावित भूभू जोत टनल बनकर निकलेगी। इसके बनने से
कुल्लू से जोगिंदर नगर की दूरी लगभग 59 KM घट जाएगी लेकिन यह प्रोजेक्ट राजनीती की मार झेलता रहा है और अभी भी कामयाब
नहीं हो पाया है।
चढाई चढ़ते हुए कई फूलदार पौधे हमें देखने को मिले, जिसमें Roscoea spp, Eriocapitella rivularis, arisaema spp, मुख्य थे। चढाई के साथ घनी धुंध भी हमारे साथ आँख मिचोली खेल रही थी। कभी हटती तो कभी फिर आ जाती। इस चढाई के दौरान Menina को सामान के साथ काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। जिसे देखते हुए आधे रास्ते में मैंने उनके पिट्ठू को उठाना ठीक समझा। अकसर ऐसी खड़ी चढाई में दूरी का सही अनुमान लगाना मुश्किल होता है। ऐसा लगता है जैसे अभी कुछ देर में ही पहुंच जायेंगे, परन्तु यह मात्र भ्रम होता है। और जो व्यक्ति इस भ्रम में पड़ जाता है वह बार-बार हताश होकर बहुत थक्का हुआ महसूस करता है। शायद Menina के साथ भी यही हुआ था।
सफर ज्यों-2 ऊँचाई की ओर चलता गया घाटी के सुंदर भू-दृश्य और भी निखर के नजर
आते गये। पूरे सफर में हमने 2 जगह विश्राम
किया। दिन के लगभग 1 बजे थे जब हम भूभू गला पहुंचे। जिसकी ऊंचाई लगभग 2900 मीटर के
करीब है,। हमारे विदेशी मेहमानों के चेहरे में कामयाबी की बड़ी मुस्कान थी जैसे उन्होंने
कोई कीला जीत लिया हो।
इतिहास की बात करें तो भभु जोत रियासत काल से ही कांगड़ा जाने का सबसे छोटा
रास्ता हुआ करता था। जो सबसे जल्दी कांगड़ा पहुंचाता था। लेकिन यह रास्ता सर्दियों
में भारी बर्फ के कारण बंद हो जाता था और मार्च तक बंद ही रहता था। इस दौरान
कुल्लू से जुड़ने का एक मात्र साधन दुल्ची जोत रहता था। जो पूरी साल खुला रहता था ।
मैं और विशाल केवल यहीं तक की सोच कर आये थे। हमारा कुल्लू जाने का कोई प्लान
नहीं था। इसलिए हमने मेहमानों से विदाई ली और भूभू गले से थोडा उपर की ओर जाकर कोई
अच्छी से जगह पर खाना खाना उचित समझा। परन्तु वहां उपर से देखने पर कुल्लू की लग घाटी के गाँव
इतने नजदीक दिख रहे थे कि मैं खुद को कुल्लू की ओर खिंचा जाने से रोक न पाया। मेरे
कुल्लू से लगाव की वजह वहां बिताया लम्बा समय है। मेरी बचपन से लेकर पूरी पढाई
कुल्लू में ही हुयी है। और वन विभाग में आने से पहले तक मैं कुल्लू ही रहता था।
इसलिए कुल्लू मेरे लिए एक दूसरा घर जैसा है।
बहुत ही सुंदर वर्णन। ऐसे ही लिखते रहिए।
ReplyDelete❤️बहुत-2 शुक्रिया आपका, आगे की यात्राएं भी लिखी जाएंगी। ❤️🙏🏻
DeleteSuppbbb as usual 😊😊👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteThanks ❤️🙏🏻
DeleteWah boht khubsurat
ReplyDelete❤️शुक्रिया आपके स्नेह के लिए❤️🙏🏻🙏🏻
DeleteExcellent adventure with job
ReplyDelete❤️Thank You❤️
Deleteबहुत बह5त मुबारक आपको इस बेहतरीन लेख के लिए
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया इस काबिल समझने के लिए ❤️❤️🙏🏻🙏🏻
Delete#blissfull....😍👌
ReplyDeleteThanks ❤️🙏🏻
Deleteबहुत सुंदर। ऐसा लग रहा है जैसे हम भी भुभु जोत घूम आयें हो ।
ReplyDeleteधन्यवाद आपके स्नेह के लिए ❤️🙏🏻
DeleteWow.... Well written.. l have travelled this route the other way.. that is from Kullu to jogindernagar in September 1990..
ReplyDeleteAfter reading your blog, I will surely write my blog and share it with u.
आभार आपका, इंतज़ार रहेगा आपकी स्टोरी का, 1990 के समय की भुभु का दीदार करने का मौका मिलेगा हमें
DeleteGood jogi keep it up
ReplyDeleteNice article
❤️ धन्यवाद जी ❤️ 🙏🏻🙏🏻
Deleteशाबाश मेरे भाई 👌👌👌👍
ReplyDelete❤️शुक्रिया🙏🏻❤️
Deleteबहुत बढ़िया भाई जी।
ReplyDelete❤️ धन्यवाद जी ❤️
DeleteMagnificent views.... Poured out with wonderful writing����Keep up the great work����
ReplyDeleteहां हां, धज्जियां तो whats app में उड़ेगी 🤣🤣
Delete❤️Thanks❤️
Beautiful brother keep it up and keep exploring
ReplyDelete❤️Thanks brother❤️
DeleteVery good work Joginder...
ReplyDelete❤️ आभार ❤️
DeleteMesmerizing view.. awesome way to express journey
ReplyDeleteKeep it up bro.. hope to see next blog soon ����
Thanks ❤️🙏🏻 working on it.. 🙂
Deleteबहुत शानदार भाई जी , बहुत अच्छा लगा आपसे इतना कुछ जानकर । मेरे कुल देवता हुरंग नारायण है और मैं लग घाटी का निवासी हूँ । आपका इतनी जानकारी के लिए बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी,, जय हुरंग नारयण..
Deleteबहुत ही बेहतरीन तरीके से बयान किया है भाई। 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन तरीके से बयान किया है भाई। ��������
ReplyDelete❤️Thanks Akki❤️🙏👍
Deleteमज़ा आ गया पढ़ कर जनाब
ReplyDelete❤️ Thanks ❤️
Deletekya baat hai bhai...
ReplyDeleteit is when "fashion meets passion"
this article is full of knowledge...
Thank You Bhai ❤️🙏
Deletegreat job sirji keep it up....
ReplyDeletethanks Abhishek Thakur
DeleteAwesome bhai jaan
ReplyDeleteशुक्रिया भाई जान 🙏🏻🙏🏻
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